बज्म़-ए-शेर-ओ-शायरी
25 Jun 2013 13:07
Mak_786
Memberदोस्तों
इस पोस्ट का मकसद सिर्फ उर्दूजुबान के इस्तेमाल को बढावा देना भर हैं।
इस बज्में-शेर-ओ-शायरी में आप सभी का खैरमक्दम हैं।
मैं यहाँ अपना लिखा एक शेर पेश कर रहा हूँ और उसके बाद आपके लिए एक अधूरा मिसरा छोड़ दूंगा
जिसको उर्दू भाषा में मुक्कम्मल आपने करना हैं।
और जो जनाब इसको मुक्कम्मल करेंगे वहीं अगले शेर का मिसरा भी देंगे दूसरे कद्रदानो के लिए।
पहली कोशिश कीजिएगा
कि “जवाबी शेर” आपका अपना लिखा हुआ हो वरना दूसरे का लिखा शेर भी मंजूर होगा
“बस इतना ख्याल रखिएगा कि”
1-) कठिन उर्दू अल्फाजों के मायने जरूर बताइयेगा ताकि सबको शेर के माने समझने में आसानी हो जाए
Mak_786
Member2-) अगर शेर आपने खुद लिखा हैं तो नीचे अपना नाम या अपना तख्ळुस <छद्म नाम जो हर शाय़रजरूर रखना पसंद करता हैं> वरना जिस शायर का वोह शेर हैं उनका नाम जरूर पेश कीजिए ताकि उनके बारे में लोग जान सके।
3-) अपने मिसरे का जवाब मिलने के बाद आप उस मिसरे पर लिखा अपना <या शायर का> शेर भी पेश करने की तकलीफ भी गंवारा करें ताकि बाकि लोग यह जान सकें कि आपने किस ख्याल के साथ उसको लिखा हैं।
लीजिए जनाब पेशे खिदमत हैं बज्म़-ए-शेरों शायरी पहला शेर:
“फिक्रे फाका” से मिले फुरसत तो करे “दीदार” हम भी तेरा ऐ जिंदगी।
निगाहों में “फक्त” रोटियाँ और जेहन में बच्चोकी फरमाइशे “तवाफ” करती हैं॥
और लीजिए यह कुछ अल्फाज आपके लिए
जिनको आपने अपने शेर मे इस्तेमाल करना हैं।
“आइना वहीं हैं”
उर्दू लफ्जों के मायने:
फिक्रे फाका= भूखे न रह जाने की फिक्र
दीदार= देखना
फक्त=सिर्फ
तवाफ= घूमना, चक्कर लगाना
bhat
MemberMai yanha kuch kosish kar raha hoon..
Ae meri zindagi agar bhukh aur bewasi se fursat mile to mai tere didar karu.
Nighao me to har waqt rotiya aur jehan me bacho ki farmishe ghuma karti hai.
Mak_786
Memberभाई भट्ट
यहॉँ आपको अपने लिखे शेर पेश करने हैं नाकि शेरों का तर्जुमा बताना हैं
Mak_786
Member@ Zaidiboyz आपके दोनों शेर बेहद उम्दा हैं मगर आप एक गलती कर रहे हैं आपको इस मिसरे से मिलता हुआ शेर पेश करना हैं।
“आइना वहीं हैं”
और उसके साथ ही एक अधूरा मिसरा भी छोडना हैं ताकि कोई दूसरा भी अपनी कोशिश पेश कर सकें।
इस पोस्ट का मकसद आपके अंदर के छुपे शायर को बाहर निकालना भर हैं।
इससे आपको उर्दू जुबान समझने में मदद मिलेगी।
Mak_786
Memberबहुत बढिया @ जैदीब्वायज
तगाफुल: उपेक्षा, अनदेखी, नजरअंदाज
Mak_786
Memberशबे स्याह की एक हद तो मुकर्रर कर दें यारब।
एक अर्सा हो गया हैं चश्मे बेनूर को पथराए हुए।।
शबे स्याह: अंधकारमय रात
चश्मे बेनूर: अंधी आँखें
अगला मिसरा
“कभी अर्श से किया करते थे गुफ्तगु
Mak_786
Memberजर्रानवजी का शुक्रिया जनाब
मगर गुफ्तगुं मुसलसल रखने के लिए अगला शेर तो पेश कीजिए
intazar
Memberकभी अर्श से किया करते थे गुफ्तगू और फरिशते भी करते थे जी हुजूर।
अब तो न वो दिन है, न इंसा और न रहा वो शऊर।।
मिसरा: ख्वाबों में मिले
Mak_786
Memberवाह..वाह जवाब नही आप दोनों का।
शऊर: तहजीब
ख्यालों के दरिया हैं मुंतजिर किसी आवारा कंकड के।
कुछ खलबली तो मचे, करे एहसास के जिंदा हैं हम।।
मुंतजिर: इंतजार, प्रतिक्षा
मिसरा:-कुछ भी नहीं
intazar
Member@Mak_786
वाह... वाह... बहुत खूब!
शोर-ए-आलम सा है बस और कुछ भी नहीं
बहुत देखे हैं मैंने कारवां बहारों का।
शोर-ए-आलम - दुनिया का शोर
कारवां - यात्रीयों का दल
बहार - बसतं ऋतु
पेशे नज़र है अगला मिसरा-
“सोचा न था”
Mak_786
Memberबहुत खूब इंतजार भाई
मगर एक मामूली सी कमी हैं इसमें
“शोर-ए-आलम सा है बस और कुछ भी नहीं
बहुत देखे हैं मैंने कारवां बहारों के।”
“सोचा न था खूने जिगर ऐसे होगा अपने अरमानों का।
चले थे मुनिसो गमख्वार बनने हम तो दुनिया के॥
खूने जिगर: दिल का खून
मुनिसो गमख्वार: दुःख दर्द का इलाज करने वाले
अगला मिसरा:
खौफ-ए-इलाही तो तेरे दिल में भी हैं नासेह
intazar
Memberरंज क्यूं है तेरी आंखों में दहकते अंगारों सा।
जलना तो तय ही था तेरे इस परवाने को।।
मिसरा: मगर नहीं मिला कोई
Mak_786
Memberइंतजार भाई
इसमें कुछ कमी सी हैं।
लफ्जों के मायने कुछ खास निकलकर नहीं आ रहें।
मैने इसमें थोड़ी तब्दीली कर दी हैं।
“रंज क्यूं है तेरी आंखों में इन दहकते अंगारों के लिए।
मुक्क़दर हैं यही परवाने का, एक दिन राख़ में तब्दील होना”
मिसरा: मगर नहीं मिला कोई[
जश्ने बहारां मनाने की आरजूएं तो थी बहुत अपनी भी।
मगर नहीं मिला कोई मौका यह अरमां निकालने का॥
जश्न ए बहारा: बहारो के आने पर मनाया जाने वाला उत्सव
पेशे नजर हैं अगला मिसरा
दाद वहीं जो दिल से खुद ब खुद निकले
bhat
MemberWah wah kya khoob, Massah allaha aap ka to jabab nahi,
Mak_786
Memberकुछ इस तरह निकला कारवाँ मेरा कूंचा-ए-यार से।
जैसे निकले अरमाँ दिल-ए-गुरबत-ए-लाचार से
दिल-ए-गुरबत-ए-लाचार से : अपनी गरीबी से मजबूर दिल
या इसको यूं भी कह सकते हैं।
“मजबूर गरीब दिल”
मिसरा: कह देते तो न रहता मलाल सकूंने दिल गवाने का